Thursday, April 29, 2010

Sushant Mundkar youth leader Maharashtra

Sushant Mundkar youth leader Degloor Sushant Mundkar youth leader MUKHED Sushant Mundkar youth leaderBHOKAR Sushant Mundkar youth leader HADGOAN Sushant Mundkar youth leaderKINWAT Sushant Mundkar youth leader NAIGOAN Sushant Mundkar youth leader ARDHAPUR Sushant Mundkar youth leader BILOLI Sushant Mundkar youth leader DHARMABAD DIST Nanded

Thursday, April 22, 2010

"I am not perfect yet but I am the best of all "Sushant Mundkar youth leader Degloor Nanded Maharashtra


"I am not perfect yet but I am the best of all " Now lates form the network get in touch with the all friends. When we are get touch with all then we work for pepole if you have a power then it use for pepole. Go on that post from their you can easily work for them so try to be best in your sector. When we form network it help us to work for them dont wait for goverment or any leaders help pepole ask us for help because they belive that we can solve their problem. So lead them and now dont wait for other get connected friends and form devloping indian jai hind Sushant Mundkar student youth leader Degloor Nanded Maharashtra india

Tuesday, April 20, 2010

Magical sound trough hard work flute by Sushant Mundkar youth leader Degloor Nanded Maharashtra


Life Is Like a Flute..
It May Have Many Holes
& Emptyness In It
But
If U Work On It Carefully,
It Can Play Magical Melodies just like that we have many resources to work for devlope pepole but try to work on that. Here any not politics or not even acceptaions from them for us.Just when we work the many things that we satisfied our self to work again then it works. You are so talented you not need to say take care By Sushant Mundkar student Youth leader Degloor Nanded Maharashtra india

हर दम जमीन पे पाँव होना जरुरी है सुशांत मुंडकर युवा नेता देगलूर नांदेड महाराष्ट्रा


इस आधुतिक युग मे जो प्रगती हो रही है उस मे दो विचार प्रवाह है एक उसे आच्छा माने ना वाला और दुसरा उस मे बदलाव चाहने वाला ये दो भी सही है एक ताकत अगर आधीक ताकतवान हो जाये तो उसे किसीका डर नही रहता है और यह रास्ते से भटक जाते है इसी लिये हर दम जमीन पे पाँव होना जरुरी है सुशांत मुंडकर युवा नेता देगलूर नांदेड महाराष्ट्रा

Thursday, April 15, 2010

Politics + youth =Devlopement by Sushant Mundkar youth leader Maharashtra

Politics and youth is feature combination of devlopement. Why we think it is dirty ! If it is then some one have to clean it so why we not try for it if we devlope that we only going to work for family and friends that time we not work for india so lets get try to devlope india come and join it. If you want help get connect with me through mail. I surely solve it jai hind by Sushant Mundkar youth leader Maharashtra india

Tuesday, April 13, 2010

युवा करेगेँ देश का विकास सुशांत मुंडकर देगलूर युवा नेता महाराष्ट्र

"युवा प्रगती का नाम
युवा देश का विकास
युवा आम आदमी का साथी युवा है बदलने कि ताकत
युवा उभरती शक्ति का नाम
" युवा करेगेँ देश कि प्रगती अब आने वाली शक्ति बदलेंगे आनेवाला भविष्य " सुशांत मुंडकर देगलूर युवा नेता महाराष्ट्रा

युवा करेगेँ देश का विकास सुशांत मुंडकर देगलूर युवा नेता महाराष्ट्र

Sushant mundkar Student youth leader Degloor dist Nanded Maharashtra india


Youth the powerful youth that all trust with close eye. Youth the second name of devlopment. Youth that work hard for other make happy thats the youth that we work for change. So lets make it happen for powerful devloped india by sushant Mundkar student youth leader degloor Nanded Maharashtra

Friday, April 9, 2010

भारतीय युवा राजनीति की राह Sushant mundkar youth leader maharashtra


दुनिया के सबबसे बड़े लोकतंत्र भारत में हाल में ही आमचुनाव हुए हैं और कांग्रेस युवा कार्ड के दम पर बहुमत पाने में तकरीबन कामयाब रही। हलांकि अब भी सरकार बनाने को लेकर गठजोड़ की राजनीति चल रही है और पिछली सरकार में कांग्रेस के सहयोगी रहा डीएमके मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर नाराज हो गया है और उसने बाहर रहकर समर्थन की बात साफ कर दी है। तृणमूल कांगेस प्रमुख ममता बैनर्जी भी मंत्रालयों की खींचतान में लगी हैं। अब जो युवा चेहरे जीतकर आए हैं, वे किस तरह से कोई जिम्‍मेदारी पाते हैं यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस के युवा महासचिव राहुल गांधी की युवा रणनीति अपने प्रतिद्वंदियों को चित्‍त करने में कामयाब रही। राहुल ने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कांग्रेस के पुराने पड़ चुके ढांचे को मजबूत करने की कवायद बहुत पहले ही शुरू कर दी थी। पार्टी की राज्‍य इकाइयों के पदाधिकारियों के लिए कहीं कहीं तो बाकायदा प्रवेश परीक्षा की तर्ज पर टेस्‍ट लिए गए। साक्षात्‍कार द्वारा भी अभ्‍यर्थियों की योग्‍यता आंकी गई। हलांकि मध्‍यप्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ राज्‍यों के विधानसभा चुनावों में यह कयावद आशातीत परिणाम नहीं दे सकी, लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी कवायद जारी रही। लोकसभा चुनावों में इस बार कांग्रेस ने बहुत से ऐसे चहरों को प्रत्‍याशी बनाया जो एकदम नए और जोशीले थे। नतीजा सामने है। लेकिन यह तस्‍वीर का सिर्फ एक पहलू है।

मुल्‍क में राजनैतिक सफलता की डगर कठिन और टेढ़े मेंढ़े रास्‍तों से होकर गुजरती है। कांग्रेस ही नहीं बहुत से अन्‍य दलों पर भी टिकट वितरण की धांधलियों के आरोप लगते रहते हैं। ऐसे में जब बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को निगलने में लगी हों, जिस क्षेत्र में असुरक्षित भविष्‍य हो, और कड़ी मेहनत के बावजूद आपकी उम्‍मीदवारी आकाओं के हाथ में हो तो क्‍या युवा राजनीति की ओर जाना चाहेगा। जिस देश में राजनैतिक दलों में ही भाई-भतीजावाद हावी हो क्‍या एक आम युवा के लिए कोई उम्‍मीद बची है। जहां राजनेताओं का भविष्‍य बहुत हद तक क्षेत्रीयता, जातीय समीकरणों और सम्‍पत्‍ति से तय होता हो क्‍या उस देश का युवा विकास की राजनीति करने की सोच सकता है।

हिंदुस्‍तान में विकास आधारित राजनीति अब दूर की कौडी़ हो गई है। इस बार भी लोक सभा में पहुंचने वाले धन कुबेरों की संख्‍या बहुत है। बाहुबली तो पहले से ही पहुंचते रहे हैं। दागी और अपराधियों से भी संसद अछूती नहीं रही है। कई राज्‍यों में तो मंत्रियों पर ही कई अपराधों के मामले चल रहे होते हैं लेकिन वे सत्‍ता में होते हैं और सुख भोगते हैं। ऐसे में स्‍वस्‍थ राजनीति की बात सोचना भी आसान नहीं लगता। हमारे यहां राजनैतिक दलों के पदाधिकारी अपने परिजनों और चहेते चेहरों के लिए सुरक्षित उम्‍मीदवारी चाहते हैं। सेवा के बदले मेवा पाने के लिए अंदरूनी कलह इस कदर बढ़ जाती है कि चुनाव के दौरान एक ही दल के दो फाड़ हो जाते हैं। नेताओं को निजी स्‍वार्थों के चलते विरोधी पक्षों से हाथ मिलाने में भी कोई हर्ज नजर नहीं आता। लेकिन अब भी राजनैतिक सफलता के लिए न सिर्फ सत्‍तासीनों को बल्‍कि आम कार्यकर्ता को भी अथक मेहनत करनी होती है और इसके बाद भी पदाधिकारियों की कृपा पर बहुत कुछ निर्भर करता है। राजनैतिक दलों में पैसे लेकर टिकट बांटने की बात जमाने से होती रही है। कई राज्‍यों के पिछले विधानसभा चुनावों में यह बात खुलकर सामने आई थी कि पार्टी के कर्ताधर्ता सौदेबाजी कर अपने चहेते चेहरों को टिकट थमा देते हैं। ऐसे में कई बार ऐसे उम्‍मीदवार भी टिकट पा लेते हैं जिनको जनता तो क्‍या खुद उस पार्टी का आम कार्यकर्ता नहीं पहचानता। ऐसे में पार्टियों में धड़ेबाजी होना भी आम बात है। किसी भी पार्टी के शीर्ष पदाधिकारी इन दिनों राजनैतिक तौर पर अपने चहेतों को स्‍थापित करने में लगे रहते हैं। बड़े स्‍तर से लेकर छोटे स्‍तर तक हर जगह की राजनीति में भी अंदरूनी राजनीति हावी है। हर राजनैतिक दल इस भीतरघात का शिकार है और इससे त्रस्‍त है। लेकिन अब तक किसी के पास इसका कोई हल नहीं है। हर दल में प्रादेशिक नेतृत्‍व से लेकर राष्‍ट्रीय स्‍तर तक राजनीति षड्यंत्रों से भरी हुई है।

हर नेता अपने और अपनी पसंद के लोगों के लिए सुरक्षित राजनैतिक जमीन चाहता है। ऐसे में एक आम युवा कार्यकर्ता को सिर्फ हताशा और निराशा ही हाथ लगती है। कई बार एक ही दल का दिग्‍गज नेता उसी दल के किसी दूसरे कद्दावर नेता के लोगों के टिकट कटवा देता है या फिर किसी न किसी तरह उसे राजनैतिक नुकसान पंहुचाता रहता है। दलों के लिए इस स्‍थिति से निपटना बड़ा मुश्‍किल होता है। ऐसे हालातों से पार्टियों को चुनावी नुकसान भी होते हैं, लेकिन किसी के पास इसका कोई कारगर इलाज नहीं है।…

राजनीति यूं भी हर किसी के लिए फायदे का धंधा हो गई है। छुटभैये नेता भी किसी न किसी नेता का संरक्षण चाहते हैं ताकि उनके वैध अवैध काम कंही भी न रूकें। कई बार तो देखने में आता है कि शासन प्रसाशन में राजनेता इतना दखल देते हैं और कई बार विकास कार्यो में सिर्फ अपने स्‍वार्थों के चलते रूकावटें पैदा करते हैं, राजनीति का असली मकसद ऐसा तो हरगिज नहीं होता। असल में विकास की राजनीति से नेता दूर होते चले जा रहे हैं। आज राजनीति का सीधा मतलब पैसा और रसूख बनाना रह गया है। उत्‍तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, मध्‍यप्रदेश बल्कि ऐसा कहें कि पूरे देश में ही ऐसा चलन चल निकला है कि एक बार किसी भी तरह राजनीति में स्‍थापित हो जाओं और अगर चुनाव जीत जाते हैं तो जिंदगी भर चांदी काटो।

लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई पंचायत के चुनावों में ही प्रत्‍याशी जीत के लिए पानी की तरह पैसा बहाते हैं। अब ग्राम पंचायत के सरपंच या प्रधान ही बहुत महत्‍वपूर्ण हो गए हैं, विकास की दृष्‍टि से नहीं बल्‍कि पैसे और ताकत की दृष्‍टि से । पंचायती राज के प्रभावी होने के बाद से तकरीबन हर राज्‍य का सरकारी विभाग ग्राम पंचायत के साथ मिलकर कार्य कर रहा है और अधिकारी, कर्मचारी बिना सरपंचों की मिली भगत से कोई काम नहीं कर सकते, नतीजतन ऐसा हो रहा है कि नेतानगरी और सरकारी तंत्र मिल बांटकर खा रहे हैं। विकास के नाम पर सरकार, राष्‍ट्रीय और अंर्तराष्‍ट्रीय ऐजेंसियों की करोड़ों अरबों रूपयों की राशि से भी विकास कार्य नहीं हो पा रहे हैं। रोजगार गारंटी योजना और कई अन्‍य महत्‍वपूर्ण बहुउद्देशीय योजनाओं में यह बात खुलकर सामने आई है। ग्राम पंचायत स्‍तर पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन के कार्ड उन परिवारों के बने हैं जिनके पास पूरे आस पास के इलाकों में सर्वाधित धन धान्‍य है। हरियाणा, पंजाब, मध्‍यप्रदेश, राजस्‍थान हो या बिहार उत्‍तर प्रदेश, तकरीबन हर राज्‍य में यही स्‍थिति है। दक्षिण भी इससे बचा नहीं है। सरपंची हर कोई इसलिए चाहता है कि पांच साल में कम से कम एक चार पहियो वाली गाड़ी और बचत खाते में पांच अंकों की पूंजी बना सके। कई ऐसे पंचायत सरपंच हैं जिन्‍होंने साल डेढ़ साल के भीतर ऐसा किया भी है। यह ऐसी कोई बात नहीं है जिसे इस मुल्‍क में कोई जानता नहीं है, लेकिन बात यह है कि इसके विरोध में कोई कुछ नहीं कर सकता। ऐसी व्‍यवस्‍था बना दी गई है।

पंचायती राज के निर्माताओं ने आधारभूत विकास के सपने को लेकर इस व्‍यवस्‍था की हिमायत की थी और स्‍थानीय विकास के लिए पंचायती तंत्र की स्‍थापना की। लेकिन पंचायती राज का यह भी एक प्रभाव देखने में आया है कि ये इकाइयां भ्रष्‍टाचार का अड्डा बन गई हैं। सरपंच, पंचायत सचिवों से लेकर संबधित विभागों के कर्मचारी अधिकारी सब मिलकर मलाई खा रहे हैं और जमीनी हकीकत ज्‍यों की त्‍यों है।सबसे छोटे स्‍तर की राजनीति में यह आलम कब तक बरकरार रहेगा कोई कह नहीं सकता। ब्‍लॉक स्‍तर और जिला स्‍तर की राजनीति भी इसी क्रम में बढ़ती हुई है और कमोबेश ऐसे ही हालात नगरीय निकायों की राजनीति में भी हैं। इसी क्रम में आगे बढ़ती राजनीति से पूरा देश त्रस्‍त है। अब सवाल यह उठता है कि क्‍या राजनीति में आम युवा के लिए इतने अवसर है,या क्‍या युवा खुद को राजनीति में शामिल करना पसंद करता है। जवाब अक्‍सर ना में ही होता है। यह भी उतना ही सच है कि राजनीति आम युवा के लिए सचमुच मंहगी हो गई है। लंबे और जमीनी संर्घष करने वाले कार्यकर्ताओं की अनदेखी और वंशवाद को बढ़ावा देने से राजनीति लगातार दिशाहीन ही हो रही है। देश की पूरी राजनीति कुछ परिवारों के पास कैद हो गई है। हिंदुस्‍तान का आम युवा यूं भी राजनीति से दूर रहने में ही भलाई समझता है और जो कुछ इसमें आते हैं उनकी राह भी इतनी आसान नहीं होती है। ऐसे में कुछ ही परिवारों की धरोहर बनती भारतीय राजनीति की नैया हिचकोले खाते हुए चल रही है।

देश का आम युवा हर तरह से कोशिश करता है कि वह किसी भी तरह की राजनीति से खुद को दूर रखे। राजनीति को भ्रष्‍ट और खराब मान लिया गया है। कोई राजनीति नहीं करना चाहता है खासकर युवा। तो क्‍या फिर इसी तरह चलता रहेगा, जिस देश की आबादी का एक बड़ा हिस्‍सा युवा हो, जहां की हर बात राजनीति से तय होती हो, वहां के युवा का राजनीति की मुख्‍यधारा से कटे रहना मुल्‍क के लिए कतई लाभदायक नहीं हो सकता है। इस देश में स्‍वस्‍थ माहौल के लिए विकास की राजनैतिक संजीवनी की जरूरत है। सड़े गले तंत्र में फिर से जान फूंकने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है। इसके लिए युवा राजनीति के नारे से ही काम नहीं चलने वाला, युवाओं को राजनीति में अग्रसर होना भी आवश्‍यक है। बेहतर सोच के साथ आम युवा को राजनीति में खुद के लिए अवसर तलाशने होंगे। विकास की राजनीति, विकसित सोच के युवाओं के हाथों ही लंबे समय तक बेहतर भविष्‍य के रास्‍ते आगे बढ़ सकती है।